जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज लंबे समय से शारीरिक दुर्बलता ओं का सामना कर रहे थे लंबे समय तक इलाज के बावजूद भी स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो पा रहा था। शरीर का वजन काफी ज्यादा बढ़ गया था जिसके फलस्वरूप चलने फिरने में कई दिनों से दिक्कतें होने लगी और अंतिम समय में लगातार चार-पांच महीने के लिए हमें बिस्तर पर ही लेट कर अपने स्वास्थ्य को संभालना पड़ा इसके लिए उन्हें सहारा लेना पड़ता था उनके देखभाल में बड़े-बड़े डॉक्टर्स की टीम थी जो उनके नित्य जीवन में होने वाली क्रियाओं को सर्च करने में व उनके स्वास्थ्य को देखभाल करने में पूर्ण ख्याल रख रही थी। किंतु बोलते हैं मृत्यु अंतिम सत्य हैं इस शरीर पर किसी का नियंत्रण नहीं। शारीरिक दुर्बलता ओं के चलते सांस लेने संबंधित समस्या हो रही थी। उनकी इस समस्या का समाधान बड़े-बड़े डॉक्टर भी नहीं कर पा रहे थे और गुरुदेव ने ठान लिया था कि इस नाशवान शरीर को ज्यादा कष्ट ना देकर समाधि की स्थिति में जाकर इस शरीर का त्याग उन्होंने अपने 99 जन्म दिवस के पश्चात 1 सप्ताह बाद कर दिया।
उनके पार्थिव शरीर को उनके निज स्थान जहां पर उनका कार्यकाल रहा है पूर्ण रूप से यात्रा निकालकर उनकी अंतिम इच्छा अनुसार भ्रमण कराया गया जिसमें 100000 से भी अधिक लोग सम्मिलित हुए और उनके मठ मंदिरों के सभी संचालकों के साथ-साथ गुरु दीक्षा लेने वाले सभी लोग काफी दुखी दिखाई पड़े। साथ ही गुरुकुल में पढ़ने वाले सभी वर्तमान व भूतपूर्व छात्रों में अनुभव किया कि उन्होंने एक असामान्य प्रतिभा ईश्वर के स्वरूप को खो दिया है। गुरुदेव के सानिध्य में संचालित आंखों के ऑपरेशन के लिए चलाए जाने वाली फ्री सुविधा के माध्यम से लाभान्वित होने वाले सभी सामान्य व गरीब लोग जिन्हें गुरुदेव के आशीर्वाद के रूप में नई आंखें प्राप्त हुई उन्होंने भी उनके अंतिम दिवस पर सम्मिलित होकर अपार दुख का अनुभव किया। गुरुदेव के जन्म से भारतीय समाज में भारतीय संस्कृति की अनुपम रूपरेखा प्रस्तुत हुई और उनके सानिध्य में करोड़ों लोगों के जीवन में बदलाव आया उनके एक नजदीकी भूतपूर्व छात्र और मट के संचालक द्वारा उनके विषय में जानकारी देते हुए लिखा गया ।
जो आपको एक बार अवश्य ही पढ़ना चाहिए।

शिवाय नमः
गुरुदेव! आपने हम अज्ञ, मूर्ख और जडबुद्धि पतितों को धर्म का मार्ग दिखाया, धर्म करना सिखाया, जीवन का लक्ष्य क्या है ये बताया। आप तो सार्वभौम जगद्गुरु हैं, आपने यह भौतिक शरीर त्याग दिया तो क्या हुआ? हम तो आपके ही बताए मार्ग के अनुसार आपको अर्थात आपकी आत्मा को जो कि वास्तव में ब्रह्म ही है, उसे ही अपना गुरु मानते हैं। आपका शरीर नही रहा तो क्या हुआ! आप अब भी हम बुद्धिहीन पतित हिन्दुओं के उत्थान के लिए मार्ग बताते रहेंगे। आप शिवस्वरूप हैं, आपका धर्म व राष्ट्र हित में किया गया योगदान अमूल्य है। हिन्दू जनमानस सहस्रों जन्मों में भी आपका ऋण नही चुका सकता।
गुरुदेव! आपने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया, आप म्लेच्छों से लड़ते रहे निर्भीक होकर। देश स्वतन्त्र हुआ, आप फिर भी शासनतन्त्र से लड़ते रहे धर्म के लिए। आपने राममंदिर का मार्ग प्रशस्त किया, आपने सिद्ध किया कि रामलला का जन्म वहीं हुआ था। हिन्दुओं की मृत पड़ी अस्मिता को आपने ही तो संजीवनी दी थी।

गुरुदेव! जब सब ओर एक म्लेच्छ प्रेत की ही पूजा हो रही थी, हिंदू दिग्भ्रमित था तब आपने ही प्रखर रूप से इसका विरोध किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि आज उस प्रेत की पूजा लगभग खत्म हो गई है। शङ्कराचार्य क्या होते हैं यह आपने हमें बताया।
गुरुदेव! आप श्रीविद्या के साधक हैं, आपने न जाने कितना अध्ययन किया लेखन किया। न जाने कितने ही धार्मिक रहस्यों को उद्घटित कर हम हिन्दुओं पर अपार कृपा की वर्षा की। आप धर्म के साम्राज्य के वह मार्तण्ड हैं जिन्हे कभी इतिहास भूल नहीं पाएगा। आज संसार में जो भी धर्म है वह आपकी ही कृपा से है इसमें कोई संदेह नहीं।

गुरुदेव! हम मुर्ख तो आपकी कृपा के लायक कदापि न थे फिर भी आपने अपनी करुणामयी कृपा से हम सबको कृतार्थ किया। आप करुणावरुणालय हैं, आपके वात्सल्य का कोई पार नहीं पा सकता। हम, सदा काम क्रोध मद में लिप्त रहने वाले हिन्दू जिनके जीवन में दशमलव एक प्रतिशत भी धर्म नहीं, पर भी आपके अपने ज्ञानामृत की वर्षा की, भगवान के भक्ति की वर्षा की, शास्त्रों में सन्निहित दार्शनिक तथ्यों की वर्षा की। आप हमें अन्धकार से प्रकाश में खींच लाए। आपने हमें प्रभु की सेवा करना सिखाया, भगवन्नाम जपना सिखाया। कितने उपकार गिनाऊं आपके? नही गिना सकता। मैं क्या कोई नही गिना सकता।

मित्रों! आज श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्रीस्वरूपानंदसरस्वती जी महाराज ने भौतिक शरीर का त्याग कर दिया है। निस्संदेह यह हमारे लिए वज्रपात ही है लेकिन श्रीगुरुदेव के ही सिद्धान्त का मनन करते हुए हमें हर्ष शोक से व्याप्त नही होना है, बल्कि ब्रह्म से एकरूप होकर भी श्रीगुरुदेव हम अकिंचनों पर अपनी अमृत वर्षा करते रहें ऐसी प्रार्थना करनी है।
सदा धर्म्योत्थानं जगति यतमानं बहुविधं
समं विद्यास्थानं हृदि च भजमानं हरिपदम्।
विहायास्मानद्याच्युतपुरमितो यातमनघं
स्वरूपानन्दं श्रीगुरुवरमहं नौमि मनसा।।